राइटिंग (लेखन) - कथा बनाम पटकथा
फिल्में भारतीय समाज से एक अलग तरह का जुड़ाव रखती हैं और फिल्मों के समाज से इस जुड़ाव के पीछे महतवपूर्ण भूमिका निबाहती है उनकी कथा और पटकथा. काल् क्रम से हम अगर फिल्मों के इतिहास पर नजर डालें तो स्पष्ट पता चलता है कि जिन फिल्मों की पटकथा कसी हुई और मौलिक होती है, दर्शकों से उसे भरपूर प्यार मिलता है। इस लिहाज से पटकथा लेखन फिल्म निर्माण का सबसे मूलभूत और आवश्यक पहलु है जिस पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है. यह भी सर्वविदित है कि हिंदी फिल्म उद्योग के पास योग्य लेखों की हमेशा से कमी रही है इसलिए जिस पैमाने पर यहाँ फिल्म निर्माण होता है उस लिहाज से हमारा सिनेमा समृद्ध नहीं है. आज भी भारतीय परिप्रेक्ष्य की समझ और नवीन विचारों के साथ पटकथा लिखने वालों में कुछ गिने चुने नाम हैं इसलिए पटकथा लेखन को एक व्यवसाय के रूप में लेने की कोशिश युवाओं को जरुर करनी चाहिए साहित्यिक लेखन और फिल्म लेखन दो अलग अलग विद्याएँ हैं साहित्य जगत के बड़े नाम फिल्म पटकथा लेखन में कभी जम नहीं पाए तो सिर्फ उसका यही कारण था कि वे भावों के प्रवाह को फिल्म माध्यम के अनुरूप ढाल नहीं पाए. टीवी सीरियल हो या फिल्म और थियेटर...इनकी नींव में होती है, राइटिंग यानी लेखन। फिल्म और टेलिविजन जगत में जो फिल्मांकन (शूटिंग) किया जाता है, या थियेटर में जो भी मंच पर पेश आता है, उसे पहले कागज पर इस तरह लिखा जाता है, ताकि निर्देशक के सामने एक-एक सीन जीवित हो जाए। फिल्म, या टीवी प्रोग्राम के लिए ये कार्य निम्नलिखित तीन चरणों में किया जाता है।
1. पहले कहानी लिखी जाती है, फिर
2. स्क्रीनप्ले या पटकथा तैयार की जाती है, और अंत में
3. डायलॉग या संवाद लखे जाते हैं ।
कहानी, पटकथा और संवाद जितने मजबूत होंगे, शूटिंग और उसके बाद होने वाला पोस्ट प्रोडक्शन वर्क उतना ही आसान रहेगा।
जहां लेखक और साहित्यकारों का वास्ता कागज और कलम तक सीमित होता है, वहीं टीवी प्रोग्राम और फिल्म लिखने वालों को अपनी कला को परफॉर्मिंग आर्ट में तब्दील करना होता है। उन्हें वो लिखना होता है, जिसे परदे पर सही ढंग से उतारा जा सके, इसीलिए फिल्म या टीवी लेखक के लिए इन दोनों माध्यमों की जानकारी होना जरूरी है। लिखते वक्त उन्हें परदे पर उतारे जा सकने वाले दृश्यों की सीमाओं को समझना होता है, फिल्म के बजट को ध्यान में रखना होता है। किसी फिल्म में स्क्रिप्ट का महत्व ये है, कि कई बार घटिया स्क्रिप्ट होने की वजह से बड़े से बड़े बजट और नामी सितारों से लदी हुई फिल्म फ्लॉप हो जाती है। दूसरी तरफ एक मजबूत स्क्रिप्ट को कसे हुए डायरेक्शन के साथ परदे पर उतारा जाए, तो छोटे कलाकारों और मामूली बजट वाली फिल्में भी दर्शकों के दिल में उतर जाती हैं। अच्छी बात ये है कि फिल्म और टेलिविजन इंडस्ट्री में अच्छे लेखकों की हमेशा तलाश रहती है, खासकर एक ऐसे दौर में जब टीवी धारावाहिकों के 300 से 500 एपिसोड बनना आम बात हो गई है, कहानियां, संवाद और पटकथा लेखन रोजगार का एक विशाल क्षेत्र बनकर उभरा है।
फिल्म, टीवी और थिएटर की दुनिया। अक्सर लोग इसकी चकाचैंध को देखते हैं। अक्सर परदे पर, या रंगमंच पर प्रदर्शन करते हुए कलाकार ही हमारी नजर में आते हैं। लेकिन इन सबको रचने वाला एक पूरा संसार परदे के पीछे खड़ा है। इस संसार में शामिल हैं, वो लोग जो चुपचाप अपने कार्य को अंजाम देते हुए आपके सामने ग्लैमर जगत की चकाचैंध भरी रंगीन तस्वीर पेश करते हैं। यही वो लोग हैं, जो स्टारडम से कोसों दूर फिल्म मेकिंग और टीवी प्रोडक्शन में अलग अलग व्यवसायों को अपनाते हुए अपनी आजीविका चला रहे हैं। अपने अपने क्षेत्रों में इनकी अहमियत उतनी ही है, जितनी एक स्टार की, फिर चाहे वो हेयर ड्रेसर, मेकअप आर्टिस्ट, लाइटमैन, डबिंग आर्टिस्ट, एनिमेटर या स्पॉटबॉय हो।
कथा बनाम पटकथा
अनेकों के पास केवल कहानी का आइडिया होता है, तो अनेकों के पास मुकम्मल कहानी। लेकिन उनके पास पटकथा नहीं है। एकबार फिर स्पष्ट कर दूं कि कथाकार और पटकथाकार को लेकर कोई भ्रम न पालें। पटकथा-लेखन, लेखन एक चरणबद्ध प्रक्रिया है। इसके कुछ मौलिक सिद्धांत हैं, जिसे जानना जरूरी है। कहानी या कथा कैसी भी हो सकती है। एक पटकथाकार केवल उस कहानी या कथा को एक निश्चित उद्देश्य यानी फिल्मों के निर्माण के लिए लिखता है, जो पटकथा (Screenplay) कहलाती है। और दूसरी ओर, एक कथाकार स्वयं पटकथाकार भी हो सकता है यानी कहानी भी उसकी और पटकथा भी उसी की। उम्मीद है अब आपको कथाकार और पटकथाकार का कन्फ्यूजन नहीं होना चाहिए। सवाल है कि पटकथा लेखन के सिद्धांत क्या हैं? यह कैसे लिखें? क्या लिखें और क्या न लिखें? एक फिल्मी कथानक का बीजारोपण कैसे होता है, इसका प्रारूप कैसा होता है? आइए, इसे स्टेप-बाइ-स्टेप समझते हैं।
No comments:
Post a Comment